विषय-सूची
पाचन तंत्र क्या होता है ?
भोजन के पाचन की संपूर्ण प्रक्रिया 5 अवस्थाओ से गुजरता है अंत ग्रहण, पाचन, अवशोषण, स्वांगीकरण ,मल परित्याग,
मनुष्य में भोजन का पाचन मुख से प्रारंभ होता है और यह छोटी आंत तक जारी रहता है मुख में स्थित लार ग्रंथियां से निकलने वाला एंजाइम टाइलिन भोजन में उपस्थित मंडे को माल्टोज शर्करा में अपघटीत कर देता है।
फिर माल्टोज शर्करा को गुलकोज में परिवर्तित कर देता है लाइसोजाइम नामक एंजाइम भोजन में उपस्थित हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट कर देता है इसके अतिरिक्त लार में उपस्थित शेष प्रदार्थ बफर कार्य करते हैं इसके बाद भोजन अमाशय में पहुंचता है।
आमाशय क्या होती है ?
आमाशय में भोजन लगभग 4 घंटे तक रहता है भोजन के आमाशय में पहुंचने पर पाइलोरीक ग्रंथियां से जटर रस निकलता है यह हल्के पीले रंग का अम्लीय द्रव होता है आमाशय के आक्सिनेक कोशिकाओं से हाइड्रोक्लोरिक अम्ल निकलता है ।
जो भोजन के साथ आए हुए जीवाणु को नष्ट कर देता है और एंजाइम की क्रिया को तीव्र करता है हाइड्रोक्लोरिक अम्ल भोजन के माध्यम को अम्लीय बना देता है जिससे लार की टाइलिन की क्रिया समाप्त हो जाती है ।
आमाशय में निकलने वाले जठर रस में एंजाइम पेप्सिन और रेनिन होते है।
पक्काशय क्या होता है
भोजन को पक्काश्य में पहुंचते ही सर्वप्रथम इसमें यकृत से निकलने वाला पित रस आकर मिलता है और यह भोजन को अम्लीय से क्षारीय बना देता है यहां अग्नाशय से अग्नाशय रस आकर भोजन में मिलता है इसमें तीन प्रकार के एंजाइम होते हैं जैसे
1. ट्रिप्सिन
2. एमाइलेज
3. लाइपेज
छोटी आंत (Small Intestine)
यहां भोजन के पाचन की क्रिया पूरी होती है एवं पचे हुए भोजन का अवशोषण होता है छोटी आंत की दीवारों से आंतरिक रस निकलता है इसमें निम्न एंजाइम होते हैं जैसे
1. इरेपिंस – ये शेष प्रोटीन एवं पेप्टोन को अमीनो अम्ल में परिवर्तन करता है।
2. माल्टेज- यह माल्टेज को गुलकोज में परिवर्तित करता है।
3. सुक्रेज
4. लेकटेज
5. लाइपेज
किसी भी कोशिका जंतु की आहार नाल एवं लंबी कुंडलित नलिका होती है जो मुख से शुरू होती है और गुदा में समाप्त हो जाती है मुख गुहा आहार नाल का पहला भाग है मुख गुहा में जीभ, दांत एवं तीन जोड़ी लार ग्रंथियां पाई जाती है।
यकृत क्या होता है
यह मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है इसका वजन लगभग 1.5-2kg होता है यकृत द्वारा ही पित स्रावित होता है यह पित आंत में उपस्थित एंजाइम की प्रक्रिया को तीव्र कर देता है यकृत प्रोटीन के अपापचय में सक्रिय रूप से भाग लेता है और प्रोटीन विघटन के पर स्वरूप उत्पन्न विषैले अमोनिया को यूरिया में परिवर्तित कर देता है यकृत प्रोटीन की अधिकतम मात्रा को कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तन कर देता है कार्बोहाइड्रेट उपपाचय के अंतर्गत यकृत रक्त के गुलकोज वाले भाग को ग्लाइकोजन में परिवर्तित कर देता है भोजन में वसा की कमी होने पर यकृत कार्बोहाइड्रेट के कुछ को वसा परिवर्तित कर देता है।
फाइब्रिनोजेन – नामक प्रोटीन का उत्पादन यकृत से ही होता है जो रक्त के थक्का बनने में मदद करता है हिपेरिन – नामक प्रोटीन का उत्पादन भी यकृत के द्वारा ही होता है जो शरीर के अंदर रक्त को जमने से रोकता है
यकृत थोड़ी मात्रा में लोहा तांबा और विटामिन को संचित करके रखता है
भोजन में जहर देकर मारे गए व्यक्ति की मृत्यु के कारणों की जांच में यकृत महत्वपूर्ण सुराग होता है।
पित्ताशय क्या होता है
पित्ताशय नाशपाती के आकार की एक थैली होती है जिसमें यकृत से निकलने वाला पित जमा रहता है पिताशय से पित नालिका के माध्यम से आता है पित्त का पक्कवशय में गिरना प्रतिवर्ती क्रिया द्वारा होता है पित पीले हरे रंग का क्षारीय द्रव है जिसका PH मान 7.7 होता है पित में जल की मात्रा 85% एवं पित वर्णक की मात्रा 12% होती है।
पित के मुख्य कार्य-
1. यह भोजन के माध्यम को क्षारीय कर देता है जिससे अग्नाशय रस क्रिया कर सके
2. यह भोजन में आए हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है
3. यह विटामिन k और वसाओ में घुले अन्य विटामिनों के अवशोषण में सहायक होता है
4. यह वसाओ का इम्लीसीकरण करता है।
आग्न्याशय क्या होता है ।
यहां मानव शरीर की दूसरी सबसे बड़ी ग्रंथि है या एक साथ अंत स्रावी और बहि स्रावी दोनों प्रकार की ग्रंथि है।
इससे अग्नाशय रस निकलता है जिसमें 8.8%जल तथा शेष भाग में लवण एवं एंजाइम होते हैं यह क्षारीय द्रव होता है जिसका PH मान से 7.5-8.3 होता है इसमें तीन प्रकार के मुख्य भोज्य पदार्थ कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन को पचाने के लिए एंजाइम होते हैं इसलिए इसे पूर्ण पाचक रस कहा जाता है।
लैगरहैंस – यह अग्नाशय का ही एक भाग है इसकी खोज लैंगर है्स नामक चिकित्सा शास्त्री ने की थी ।
अग्न्याशयी रस के एंज़ाइम निम्न है
1. प्रोटीन को ऐमिनों अम्ल में तोड़ देने वाला एंज़ाइम ट्रिप्सिन कहलाता है।
2 . ऐमाइलेज़ की क्रिया कार्बोहाइड्रेट पर होती है स्टार्च तथा गन्ने की शर्कराएँ माल्टोज़ में बदल जाती हैं जो आगे चलकर ग्लूकोज़ का रूप ले लेती हैं
3. कुछ रेनिन भी होता है, जो दूध को फाड़ता है।
वृहदांत्र क्या होता है ?
बृहदांत्र का कार्य केवल अवशोषण है यह अंग विशेषतया जल का अवशोषण करता है मलत्याग के समय मल जिस रूप में बाहर निकलता है, वह बृहदांत्र के अंत और मलाशय में बन जाता है 24 घंटे में बृहदांत्र जल का अवशोषण कर लेता है।
जल के अतिरिक्त वह थोड़े ग्लूकोज़ का भी अवशोषण करता है, पर और किसी पदार्थ का अवशोषण नहीं करता इसके अतिरिक्त लोह, मैग्नीशियम, कैलसियम आदि शरीर का त्याग बृहदांत्र ही में करते हैं यहाँ उनका उत्सर्ग होकर वे मल में मिल जाते हैं ।
जीवाणुओं की क्रिया से भी पाचन में सहायता मिलती है। क्षुदांत्र में वे प्रोटीन, वसा तथा स्टार्च आदि का भंजन करते हैं बृहदांत्र में वे सेलुलोज़ का भी, जिसपर किसी पाचक रस की क्रिया नहीं होती, भंजन कर डालते हैं इसी से हाइड्रोजन सल्फाइड, मिथेन आदि गैसें उत्पन्न होती हैं।
आहार का जो कुछ भाग पचने तथा अवशोषण के पश्चात् आंत्र में बच जाता है वही मल होता है और प्रत्येक बार मल में 15,00,00,00,000 जीवाणु शरीर से निकलते हैं इस कारण मल में नाइट्रोजन की बहुत मात्रा होती है, जिससे उसकी उत्तम खाद बनती है।
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