भारत में इस्लाम की स्थापना कब हुई – इस्लाम बहुत कम समय में दुनिया में सबसे बड़े पैमाने पर फैलने वाला धर्म है। जो आज दुनिया की 23% आबादी के साथ Christianity के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है। जो आगे चलकर 2070 तक क्रिश्चियनिटी को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का सबसे बड़ा धर्म बन जाएगा।
हिंदुस्तान में इस्लाम लगभग कुल जनसँख्या के 14% हिस्से के साथ दूसरा सबसे बड़ा धर्म है। मुस्लिम आबादी के हिसाब से भारत इंडोनेशिया के बाद विश्व में दूसरे नंबर पर आता है। जो 2050 तक दुनिया की सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश बन जाएगा। (भारत में इस्लाम की सुरुवात कब कहा और कैसे हुई)
इस्लाम शब्द सुनकर मन में एक जिज्ञासा और कुछ सवाल आते हैं। जिसमे सबसे बड़ा सवाल है। हिंदुस्तान में इस्लाम की शुरुआत कैसे हुए। तो आज मै आप सभी को इस्लाम हिंदुस्तान में कैसे और कहां से आया। इसके बारे में विस्तार से बताता हु। आम तौर पर माना जाता है।
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भारत में इस्लाम की स्थापना कब हुई ? india me islam kab aaya
इस्लाम ने हिंदुस्तान में दस्तक 12 वीं शताब्दी में दी। लेकिन अगर हम इतिहास खंगाल कर देखें तो पता चलता है। इस्लाम हिंदुस्तान में छठी शताब्दी के मध्य में कदम रख चुका था।
जिसकी शुरुआत केरल के मलबार से हुई। जहा अरब व्यापारी व्यापार करने आने लगे। जो उन्हें दक्षिण पूर्वी एशिया से जोड़ती थी। इतिहासकार हेनरी मियर्स इलियट के मुताबिक 630 ईस्वी में भारतीय तट पर इन मुस्लिम यात्रियों वाला जहाज को देखा गया। हिंदुस्तान में पहली मस्जिद जुम्मा मस्जिद का निर्माण 629 ईसवी में केरल के कुडंबलूड़ में हुआ। जिसे इस्लाम अरब व्यापारी मलिक ए बिन दीनार ने पैगंबर मोहम्मद की जीवनकाल के दौरान बनवाया था।
यह मस्जिद दुनिया की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक है। जिसे हिंदुस्तान पर इस्लाम की पहली छाप के तौर पर भी जाना जाता है। माना जाता है। मानपार्ल में ही मउपलिस समुदाय भारत में इस्लाम को अपनाने वाला पहला समुदाय बना। और यही से सुरुवात हुए भारत में इस्लाम का पहला सफर। अगर हम हिंदुस्तान पर इस्लाम की सीधे प्रभाव की बात करें। तो उसमे आठवीं शताब्दी सबसे महत्वपूर्ण है। जहां से बड़े पैमाने पर इस्लाम आक्रमणों का दौर शुरू हुआ। जिनमे सबसे पहला नाम मुहम्मद बिन क़ासिम का आता है।
मुहम्मद बिन क़ासिम
मुहम्मद बिन क़ासिम उस समय मध्य पूर्व के सबसे बड़े साम्राज्य ओमियाद साम्राज्य का ईरान में सेनापति था। मुहम्मद बिन क़ासिम ने ईरान की शिराज शहर से 6000 सैनिकों के साथ माक्रान्त तट के रास्ते सिंध प्रांत के कराची शहर पर हमला किया। जहां उस समय हिंदू राजा धीर सेन का राज्य था। धीर सेन के कमजोर सेना को हराकर उसने सिंध और मुल्तान पे आसनी से कब्ज़ा कर लिया।
मात्र 17 साल की उम्र में यह जीत हासिल करने के बाद मुहम्मद बिन क़ासिम को अपनी सेना पर इतना भरोसा था। की अब उसने हिंदुस्तानी उपमहाद्वीप के बाकी राज्यों को जीतने के लिए रणनीति बनानी शुरू कर दी थी। मुहम्मद बिन क़ासिम ने हिंदू राजाओं को आत्मसमर्पण और इस्लाम स्वीकार करने के लिए पत्र लिखे।
जिसे भारत में स्वीकार नहीं किया गया। मुहम्मद बिन क़ासिम के पत्र का अपमान समझकर मुहम्मद बिन क़ासिम ने हमले की तैयारी शुरू कर दी। लेकिन इराक में अल हज्जाज बिन युसूफ की अचानक मृत्यु की वजह से उसे अपना यह अभियान रोककर वापस ईरान जाना पड़ा। अल हज्जाज बिन युसूफ उस समय ओमियाद साम्राज्य की तरफ से राज्यपाल था
इसके बाद दसवीं शताब्दी में महमूद गजनवी ने हिंदुस्तान पर कई बार हमले किए। जिनमें सोमनाथ के मंदिर को लूटना प्रमुख माना जाता है। बाद में पंजाब को जीतकर उसने पंजाब को गजनवी साम्राज्य से विलय किया। हिंदुस्तान पर इस्लाम के गहरे प्रभाव की शुरुआत 12वी सदी से हुई। मोहम्मद गौरी ने 1175 में मुल्तान पर पहला हमला किया था। इसके बाद पश्चिमी हिंदुस्तान की छोटे-छोटे राज्यों को जीतते हुए वो अपने साम्राज्य को बढ़ता चला गया।
अब गोरी की मंशा अपने साम्राज्य को पूर्व की तरफ फैलाने की थी। जहां हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान काराज्य था। मोहम्मद गौरी और आखरी हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बीच तराईएन में 2 युद्ध हुए। 1191 में पहले तराइन युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को जीत मिली। लेकिन इसके बाद अगले ही साल 1192 में तराईएन के दूसरे युद्ध में मोहम्मद गोरी को विजय मिली। 1194 में मोहमद गौरी ने खारवाल बश के राजा जय चंद्र को हराकर अपनी सत्ता को और मजबूत किया
हालांकि बाद में मोहम्मद गोरी भारत में अपनी जीते हुए साम्राज्य को छोड़कर वापस अफगानिस्तान चला गया। मोहम्मद गौरी के वापस जाने के बाद उसने हिंदुस्तान में अपने सत्ता को गुलाम कुतुबुद्दीन को सौप दिया। जिसने गुलाम बंश की निब रखी। और दिल्ली में सल्तनत को स्थापित किया। दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान बना। उसके बाद उसके सेनापति वक्तियार खिलजी ने उसके राज्य का और विस्तार करते हो 1203 ईसवी में बिहार पे जीत हासिल की।
इस विजय अभियान के दौरान उसकीं सेना ने विश्व की सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय में से एक विक्रमसवसिल विश्वविद्यालय को जलाकर राख कर दिया। इसके अगले ही साल खिलजी ने बंगाल पे जीत हासिल की। और वह इस्लाम को स्थापित करने में एक अहम भूमिका निभाई। इस्लाम की शांतिपूर्ण तरीके से प्रचार-प्रसार में सूफी संतों का बहुत बड़ा योगदान रहा। सूफी आंदोलन छोटे कारीगर ऐसे समुदाय जिन्हें समाज में अछूत समझा जाता था।
उन्हें काफी आकर्षित किया। और साथ ही इस्लाम और स्वदेशी परंपराओं की बीच की दूरी कम करने का भी काम किया। सूफी संत जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ थे। नक्शबनसूफी के प्रमुख अहमदसार्फ़ हिंद ने अन्य समुदायों की कि शांतिपूर्ण तरीके से इस्लाम को स्वीकार करने की वकालत की। हिंदुस्तान में इस्लाम का जिक्र हो और औरंगजेब का जिक्र ना हो यह कहानी अधूरी रह जाएगी। औरंगजेब ने हिंदुस्तान में इस्लाम को एक नए आयाम पर पहुंचाया।
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औरंगजेब ने फतवा ए आलम के जिसे शरीयत या फिर इस्लामी कानून भी कहा जाता है। को अपनी पूरे साम्राज्य पर सख्ती से लागु किया। हिंदुस्तान में सबसे बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन औरंगजेब के समय पर ही हुए। गैर मुसलमानों पर शरियत कानून लागू करने वाला वो भारत का पहला शासक था। अकबर और उसके बाद के ज्यादातर शासक गैर इस्लाम पे काफी उदार रहे। इसी को मुगल साम्राज्य की कामयाबी की एक प्रमुख वजह भी माना जाता है।
कहां जाता है। औरंज़ेब का सपना भारत को इस्लामी देश बनाना था। औरंगजेब ने गैर मुसलमानों परअलग अलग कर फिर से लगा दिया था। जिसे अकबर ने खत्म कर दिया था। जिसके तहत मुसलमानों से धर्म के आधार पर कर वसूला जाता था। कश्मीर में भी इस्लाम की एक बड़ी सुनामी इसी दौर में आई। कश्मीरियों को बड़े पैमाने पर इस्लाम काबुल करने पे मजबूर किया गया।
कश्मीर में 9 वे सिख गुरु टेक बहादुर सिंह से मदद मांगी। और जब उन्होंने औरंगजेब का विरोध किया। तो औरंगजेब ने भरी सभा में उनका सर कमल करवा दिया। इस दिन को सिख समुदाय के लोग आज भी गुरु को याद करता है। औरंगजेब ने कुरान को अपने शासन का आधार बनाया। लेकिन इसके बावजूद भी ज्यादातर गैर मुसलमानों की पर्व और त्यौहारों को बड़े पैमाने पर नियंत्रित करने की कोशिश भी की।
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उत्तर भारत में इस्लाम
उत्तर भारत में इस्लाम को बड़े पैमाने पर स्थापित करने के बाद औरंगज़ेब ने दक्षिण का रास्ता लिया। लेकिन मराठों के बढ़ते वर्चस्व के कारण उसे दक्षिण को जीतने में लगातार समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसीलिए 1683 में औरंगजेब स्वंग अपनी सेना का नेतृत्व करते हुए दक्षिण की और रावण हुआ। उसने अपने शासनकाल की लगभग अंतिम 25 साल इसी अभियान में विताये। औरंगज़ेब की नीतियों से हिंदुस्तान में इतने सारे विरोध पैदा हो गए की उसका लगभग पूरा शासन काल सिर्फ धर्म पर आधारित युद्ध और संघर्ष में बीत गया।
3 मार्च 1707 को औरंगजेब की मृत्यु तक मुग़ल साम्राज्य बहुत कमजोर और आर्थिक रूप से कंगाल हो चुका था। अब हिंदुओं और मुसलमानों के बीच की दुरी इतनी बुरी तरह से गहरी हो चुकी थी। जिसे फिर से मिला पाना लगभग नामुमकिन हो चूका था। इस आर्थिक रूप से कंगाल और दो बड़े धर्मो के बीच बटे हमारे हिंदुस्तान को गुलाम बनाने में अंग्रेजो को कोई खास मशक्कत नहीं करनी पड़ी।
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