संस्कृत शब्दों के निर्माण के लिए मूल तत्त्व Dhatu ही है। धातु की संख्या लगभग 2012 है
या इसे दूसरे शब्द में कहें तो संस्कृत का लगभग हर शब्द अन्ततः धातुओं के रूप में तोड़ा जा सकता है।
कृ, भू, स्था, अन्, ज्ञा, युज्, गम्, मन्, जन्, दृश् आदि कुछ प्रमुख धातुएँ हैं।
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विषय-सूची
- 1 संस्कृत में धातु रूप –
- 2 परस्मैपद पद की सभी लकारों की धातु रुप सरंचना
- 3 1. लट् लकार –
- 4 2. लिट् लकार –
- 5 3. लुट् लकार –
- 6 4. ऌट् लकार –
- 7 5. लोट् लकार –
- 8 6. लङ् लकार –
- 9 7. विधिलिङ् लकार –
- 10 8. आशीर्लिङ् लकार –
- 11 9. लुङ् लकार –
- 12 10. ऌङ् लकार
- 13 आत्मेनपद पद की सभी लकारों की धातु रूप सरंचना
- 14 1. लट् लकार
- 15 2. लोट् लकार
- 16 3. लङ्ग् लकार
- 17 4. विधिलिङ्ग् लकार
- 18 5. लुट् लकार
- 19 6. लृट् लकार
- 20 7. लृङ्ग् लकार
- 21 8. आशीर्लिन्ग लकार
- 22 9. लिट् लकार
- 23 10. लुङ्ग् लकार
- 24 धातुओं का वर्गीकरण (भेद)
संस्कृत में धातु रूप –
धातु को संस्कृत व्याकरण में क्रियाओं (verbs) के मूल रूप कहते हैं।
संस्कृत में धातु-पदों के तीन वर्ग हैं-
- परस्मैपदी
- आत्मनेपदी
- उभयपदी
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परस्मैपद पद की सभी लकारों की धातु रुप सरंचना
1. लट् लकार –
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | ति | तस् (तः) | अन्ति |
मध्यम पुरुष | सि | थस् (थः) | थ |
उत्तम पुरुष | मि | वस् (वः) | मस् (मः) |
लट् लकार को हिंदी में वर्तमान काल और English में Present Tense कहते है क्रिया के आरम्भ से लेकर समाप्ति तक के काल को वर्तमान काल कहते हैं।
जब हम कहते हैं कि ‘रामचरण पुस्तक पढ़ता है या पढ़ रहा है’ तो पढ़ना क्रिया वर्तमान है अर्थात् अभी समाप्त नहीं हुई।
2. लिट् लकार –
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | अ | अतुस् | उस् |
मध्यम पुरुष | थ | अथुस् | अ |
उत्तम पुरुष | अ | व | म |
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लिट् लकार का प्रयोग परोक्ष भूतकाल के लिए होता है। ऐसा भूतकाल जो वक्ता की आँखों के सामने का न हो। प्रायः बहुत पुरानी घटना को बताने के लिए इसका प्रयोग होता है।
जैसे – रामः दशरथस्य पुत्रः बभूव। = राम दशरथ के पुत्र हुए। यह घटना कहने वाले ने देखी नहीं अपितु परम्परा से सुनी है अतः लिट् लकार का प्रयोग हुआ।
3. लुट् लकार –
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | ता | तारौ | तारस् |
मध्यम पुरुष | तासि | तास्थस् | तास्थ |
उत्तम पुरुष | तास्मि | तास्वस् | तास्मस् |
लुट् लकार अनद्यतन भविष्यत् काल के लिए प्रयुक्त होता है। ऐसा भविष्यत् जो आज न हो। कल, परसों या उसके भी आगे।
आज वाले कार्यों के लिए इसका प्रयोग प्रायः नहीं होता। जैसे – ” वे कल विद्यालय में होंगे” = ते श्वः विद्यालये भवितारः।
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4. ऌट् लकार –
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | ष्यति | ष्यतम् (ष्यतः) | ष्यन्ति |
मध्यम पुरुष | ष्यसि | ष्यथस् (ष्यथः) | ष्यथ |
उत्तम पुरुष | ष्यामि | ष्यावः | ष्यामः |
लृट् लकार का प्रयोग सामान्य भविष्य काल के लिए किया जाता है। जहाँ भविष्य काल की कोई विशेषता न कही जाए वहाँ लृट् लकार ही होता है। कल, परसों आदि विशेषण न लगे हों।
भले ही घटना दो पल बाद की हो अथवा वर्ष भर बाद की, बिना किसी विशेषण वाले भविष्यत् में लृट् का प्रयोग करना है। ‘आज होगा’ – इस प्रकार के वाक्यों में भी लृट् होगा।
5. लोट् लकार –
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | तु | ताम् | अन्तु |
मध्यम पुरुष | हि | तम् | त |
उत्तम पुरुष | आनि | आव | आम |
लोट् लकार उन सभी अर्थों में होता है जिनमें लिङ् लकार (दोनों भेद) का प्रयोग होता है। एक प्रकार से आप कह सकते हैं कि लोट् लकार लिङ् लकार का विकल्प है।
आज्ञा देना, अनुमति लेना, प्रशंसा करना, प्रार्थना करना, निमन्त्रण देना, आशीर्वाद देना- इस सभी अर्थों में लोट् लकार का प्रयोग होता है।
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6. लङ् लकार –
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | त् | ताम् | अन् |
मध्यम पुरुष | स् | तम् | त |
उत्तम पुरुष | अम् | व | म |
लङ् लकार अनद्यतन भूतकाल के लिए प्रयुक्त किया जाता है। ‘अनद्यतन भूतकाल’ अर्थात् ऐसा भूतकाल जो आज से पहले का हो।
जैसे –
- वह कल हुआ था = सः ह्यः अभवत्।
- वे दोनों परसों हुए थे = तौ परह्यः अभवताम्।
- वे सब गतवर्ष हुए थे = ते गतवर्षे अभवन्।
जहाँ आज के भूतकाल की बात कही जाए वहाँ लङ् लकार का प्रयोग नहीं करना।
7. विधिलिङ् लकार –
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | यात् | याताम् | युस् |
मध्यम पुरुष | यास् | यातम् | यात् |
उत्तम पुरुष | याम् | याव | याम |
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जिसके द्वारा किसी बात का विधान किया जाता है उसे विधि कहते हैं। जैसे – ‘स्वर्गकामः यजेत्’ स्वर्ग की कामना वाला यज्ञ करे। यहाँ यज्ञ करने का विधान किया गया है
8. आशीर्लिङ् लकार –
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | यात् | यास्ताम् | यासुस |
मध्यम पुरुष | यास् | यास्तम् | यास्त |
उत्तम पुरुष | यासम् | यास्व | यास्म |
इस लकार का प्रयोग केवल आशीर्वाद अर्थ में ही होता है।
9. लुङ् लकार –
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | द् | ताम् | अन् |
मध्यम पुरुष | स् | तम् | त |
उत्तम पुरुष | अम् | व | म |
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‘सामान्य भूतकाल’ का अर्थ है कि जब भूतकाल के साथ ‘कल’ ‘परसों’ आदि विशेषण न लगे हों। बोलने वाला व्यक्ति चाहे अपना अनुभव बता रहा हो अथवा किसी अन्य व्यक्ति का, अभी बीते हुए का वर्णन हो या पहले बीते हुए का, सभी जगह लुङ् लकार का ही प्रयोग करना है।
‘आज गया’ , ‘आज पढ़ा’ , ‘आज हुआ’ आदि अद्यतन (आज वाले) भूतकाल के लिए भी लुङ् लकार का ही प्रयोग करना है, लङ् या लिट् का नहीं।
10. ऌङ् लकार
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | स्यत् | स्यताम् | स्यन् |
मध्यम पुरुष | स्यस् | स्यतम् | स्यत् |
उत्तम पुरुष | स्यम | स्याव | स्याम |
कारण और फल के विवेचन के सम्बन्ध में जब किसी क्रिया की असिद्धि हो गई हो अर्थात् क्रिया न हो सकी हो तो ऐसे भूतकाल में लृङ् लकार का प्रयोग होता है।
“यदि ऐसा होता तो वैसा होता” -इस प्रकार के भविष्यत् के अर्थ में भी इस लकार का प्रयोग होता है।
आत्मेनपद पद की सभी लकारों की धातु रूप सरंचना
1. लट् लकार
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | ते | आते | अन्ते |
मध्यम पुरुष | से | आथे | ध्वे |
उत्तम पुरुष | ए | वहे | महे |
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2. लोट् लकार
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | ताम् | आताम् | अन्ताम् |
मध्यम पुरुष | स्व | आथाम् | ध्वम् |
उत्तम पुरुष | ऐ | आवहै | आमहै |
3. लङ्ग् लकार
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | त | ताम् | अन्त |
मध्यम पुरुष | थास् | आथाम् | ध्वम् |
उत्तम पुरुष | इ | वहि | महि |
4. विधिलिङ्ग् लकार
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | ईत | ईयाताम् | ईरन् |
मध्यम पुरुष | ईथास् | ईयाथाम् | ईध्वम् |
उत्तम पुरुष | ईय | ईवहि | ईमहि |
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5. लुट् लकार
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | ता | तारौ | तारस |
मध्यम पुरुष | तासे | तासाथे | ताध्वे |
उत्तम पुरुष | ताहे | तास्वहे | तास्महे |
6. लृट् लकार
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | स्यते | स्येते | स्यन्ते |
मध्यम पुरुष | स्यसे | स्येथे | स्यध्वे |
उत्तम पुरुष | स्ये | स्यावहे | स्यामहे |
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7. लृङ्ग् लकार
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | स्यत | स्येताम् | स्यन्त |
मध्यम पुरुष | स्यथास् | स्येथाम् | स्यध्वम् |
उत्तम पुरुष | स्ये | स्यावहि | स्यामहि |
8. आशीर्लिन्ग लकार
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | सीष्ट | सियास्ताम् | सीरन् |
मध्यम पुरुष | सीष्टास् | सीयस्थाम् | सीध्वम् |
उत्तम पुरुष | सीय | सीवहि | सीमहि |
9. लिट् लकार
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | ए | आते | इरे |
मध्यम पुरुष | से | आथे | ध्वे |
उत्तम पुरुष | ए | वहे | महे |
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10. लुङ्ग् लकार
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथम पुरुष | त | आताम् | अन्त |
मध्यम पुरुष | थास् | आथम् | ध्वम् |
उत्तम पुरुष | ए | वहि | महि |
धातुओं का वर्गीकरण (भेद)
संस्कृत की सभी धातुओं को 10 भागों में बांटा गया है। प्रत्येक भाग का नाम “गण है।
- भ्वादिगण
- अदादिगण
- ह्वादिगण
- दिवादिगण
- स्वादिगण
- तुदादिगण
- तनादिगण
- रूधादिगण
- क्रयादिगण
- चुरादिगण
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